कण्टकवृन्द के बीच खिले अलिगुञ्जन को अनुकूल बने हम।
आतप शीत बयार सहे पशुओं के लिए प्रतिकूल बने हम।
माली की माला की शोभा बढ़ाकर भामिनी केश दुकूल बने हम।
जीवन की बगिया में अहो शतशूल सहे फिर फूल बने हम।।
© जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य